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शनिवार, 4 जुलाई 2009

कुछ और पँछी...








यहाँ पे मैंने काफ़ी कुछ पुराने ज़री के तुकडे, कढाई, कमख्वाब, लेस, सिल्क के तुकडे, और लाल रंग के परिंदे के लिए, पार्श्व भूमी मे रंगीन नेट का इस्तेमाल किया है...
एक चित्र,( लाल पँछी) जो, असली परिंदे की एक तस्वीर परसे बनाया है, बाकी सब, काल्पनिक हैं...सबसे पहला तो उल्लू है, ये नज़र आही रहा है!!
(उल्लू बड़े अच्छे लगते हैं...उन्हीं जाती-प्रजाती मै जो शामिल हूँ..!)
अन्तिम कढाई, आदिवासी जो चित्र कलामे रेखाटन करते हैं, उस तरह धागों से बनाई है...

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

ओशो गार्डन पेसे ली गयी कल्पना ...

Friday, November 25, 2005

Garden path & its detail.
An abundance of stiches & some color on hand woven cotton।( पुनेके ओशो गार्डन पेसे ये कल्पना ली मैंने...उसमे अपने मनसे कुछ बदलाव लाये गए हैं....)इसमे कई सारे कढाई के टांकों का इस्तेमाल किया है....बगीचेमे भरे रंग और फूलोंकी कल्पना अपने मनसे की है....)

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

कल्पना के रंग और तरंग !

कुछ water colour , कुछ, सिल्क के तुकडे, कुछ धागे....



इन्हीं टुकडों से सजे ये भित्ती चित्र......सूरज के ऊपर जो धुंद का एहसास है, वो उसपे सिले शिफोन के तुकडेके कारण...और ये टुकडा था मेरी परदादीके दुपट्टेमेसे बच्चा हुआ......!चान्दीके तारभी हाथकी बनी एक लेस मेसे निकल आए हैं....चित्रमे दाहिने हाथके कोनेमे....(नीचेकी और)।


आसमान तथा कढाई की पार्श्व भूमी मैंने water कलर से पेंट कर ली थी।
The lavender fields & the rose twilight (round frame) have been kidnapped by my daughter & taken away to Richmond, VA. She says she'll be entering them in an exhibition at the Ginter Botanical gardens next year.
The sunflower field, house (with pond & garden) & forest remain with me. I might lose them to her next year, perhaps.
I use a lot of french knots like you can see...