मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

Door akeli jaye....

Down the memory path...!

I had made this picture frame, almost 10 years ago, using many scraps, yarns, bits & pieces of various textured, left over materials...you name it & its there..!
The tarred road is painted..the sides of the road are made from "khadi" fabric, from Indian cottage industries...it was a torn, worn out left over of my son's pajama..!
The gray skies,were also stained with a bit of water..cord used as creeper, leaves are made from tiny bits of starched silk....& a variety of stitches along the path, to hold the appliqued fabric, as well as, to depict wild flowers...
This picture frame was bought by my frame maker himself !Much later, when I wrote a book of memoirs ,in one of the Indian regional languages, this picture was used for the front page...!

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

एक सुनहरी शाम


कुछ हाथ करघेसे बने सिल्क के टुकड़े, थोडा घरपे काता और रंगा गया सूत और रंगीन रुई के ( sliver)टुकड़े,थोडा tissue जिसका कुछ हिस्सा रंगीन रुई के टुकड़ों पे चढ़ाया गया है....और हाथसे की कढ़ाई...इन सबसे यह भित्ती चित्र मैंने बनाया है.

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

पँछी

Birds of different feathers










All of these birds live in my house. Of the hundreds of embroideries I’ve made & sold, the birds continue to remain with me. They’ve thrilled my friends, my nieces & cousins.

सब से नीचे वाले परिंदे के घोंसले मे नज़र आने वाले सफ़ेद फूलों के गुच्छे: उन्हें सर्व प्रथम मैंने, "water soluble fabric" पे बना लिया...उसके बाद, उतने हिस्से को पानी मे डुबो के , पीछे का 'फाब्रिक", जो जिलेटिन पेपर की तरह दिखता है, हटा दिया...! इन गुत्थियों को अब केवल एक टाँके से, कढाई पूरी होते, होते, टांक दिया...!

Water soluble fabric भारत मे नही मिलता। इत्तेफ़ाक़ से किसी क्राफ्ट बुक मे मुझे इसकी जानकारी मिली और मैंने किसी आने जाने वाले के साथ,ये मँगवा लिया...

घोंसले के ऊपर नज़र आनेवाली हरी पत्तियाँ: सफ़ेद रंग के सिल्क के टुकड़े को मैंने water कलर से पेंट कर लिया...
तत् पश्च्यात उसे पत्तियों के आकार मे काट लिया...फ्रेम बनने से पहले सिर्फ़ एकेक बारीक टाँके से हर पत्ती को सी लिया...दुर्भाग्य वश, घोंसले का ऊपरी हिस्सा ठीक से नज़र नही आ रहा है..ऊपर की दो पत्तियाँ छुप गयीं हैं..

मेरी एक मराठी किताब का, जिसका गर हिन्दी तर्जुमा हो तो शीर्षक होगा," जा,उड़ जारे पंछी",ये मुख पृष्ठ है। इस शीर्षक तहेत एक मालिका, मेरे "ललितलेख" इस ब्लॉग पे है। मूल किताब मे अन्य १४ लेख हैं। उस किताब मे शीर्षक लेख छोटा है, बनिस्बत के जो हिन्दी मे है।

मेरे "lalitlekh"ब्लॉग पे किताब के मुख पृष्ठ की पूरी तसवीर मैंने लगा दी है...
http://lalitlekh.blogspot.com

चित्र बनाया तब, सपने मे भी नही था,कि, कभी मेरी ही किताब का ये मुख पृष्ठ बनेगा!! किसने सोचा था, कि, मेरी बिटिया, जो, कढाई बनते समय केवल १३ साल की थी, अपना देश छोड़, कहीँ दूर मुल्क मे जा बसेगी...!और १२ साल बाद , उसकी याद मे ये लेख लिखा जायेगा...! खैर!

इस फ्रेम पे जब उजाला पड़ता है,तब ये फूल तथा, रेशम से बनी, हरे पत्तियों की परछाई पड़ती है...चित्र मे ३ डी इफेक्ट के कारन सजीवता नज़र आती है...
नीले रंग के ( आसमानी) सिल्क पे, हल्का-सा वाटर कलर करने के बाद, मैंने इस परिंदे का अस्पष्ट-सा रेखांकन कर लिया। ये चित्र मुझे World encyclopedia of birds ,इस पुस्तक मे मिला था...किसी वाचनालय से मै ये किताब ले आयी थी...परिंदे का नाम इस वक़्त याद नही आ रहा है...जब याद आयेगा, पोस्ट मे लिख दूँगी! ( Red headed Finch, ये नाम है, लेकिन यक़ीन नही)।

ऊपर से दूसरा चित्र है, Red eyed bulbul इस पँछी का..

तीसरा सभीका जाना पहचाना..."king fisher"!
परिंदों के पँख काढ़ते समय मैंने, धागों का ही इस्तेमाल किया है, वहाँ ज़राभी पेंट नही है...वरना आवाहन ही नही रह जाता...!
इन परिंदों के लेके सबसे बढ़िया compliment मुझे एक ३ साल के बच्चे से मिला था...." आपने इन परिंदों को मार दिया और फिर कांच के पीछे चिपका दिया"?