शुक्रवार, 27 मार्च 2009

कल्पना के रंग और तरंग !

कुछ water colour , कुछ, सिल्क के तुकडे, कुछ धागे....



इन्हीं टुकडों से सजे ये भित्ती चित्र......सूरज के ऊपर जो धुंद का एहसास है, वो उसपे सिले शिफोन के तुकडेके कारण...और ये टुकडा था मेरी परदादीके दुपट्टेमेसे बच्चा हुआ......!चान्दीके तारभी हाथकी बनी एक लेस मेसे निकल आए हैं....चित्रमे दाहिने हाथके कोनेमे....(नीचेकी और)।


आसमान तथा कढाई की पार्श्व भूमी मैंने water कलर से पेंट कर ली थी।
The lavender fields & the rose twilight (round frame) have been kidnapped by my daughter & taken away to Richmond, VA. She says she'll be entering them in an exhibition at the Ginter Botanical gardens next year.
The sunflower field, house (with pond & garden) & forest remain with me. I might lose them to her next year, perhaps.
I use a lot of french knots like you can see...

1 टिप्पणी:

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

परदादी के पैरहन का टुकडा गर आकाश बने
तो क्यों न लाडली पोती सपनों में रंग बुने
उन रंगो से कैनवास को जीवन नया मिले
कल्पनाओं के पंखों को ऊँचीं उड़न मिले

सुंदरता के निर्माता कको बधाई